भारतीय दंड संहिता और भारतीय न्याय संहिता में अंतर – IPC (भारतीय दंड संहिता) और BNS (भारतीय न्याय संहिता) भारत के आपराधिक कानूनों से संबंधित दो महत्वपूर्ण विधान हैं। हालाँकि, बीएनएस, जिसे 2023 में अधिनियमित किया गया और 1 जुलाई, 2024 से लागू हुआ, आईपीसी, जो 1860 से लागू थी, का स्थान लेता है। इसलिए, अब आईपीसी प्रचलन में नहीं है, और बीएनएस ही देश की मुख्य आपराधिक संहिता है।
फिर भी, इन दोनों विधानों के बीच के अंतरों को समझना महत्वपूर्ण है, खासकर कानूनी इतिहास और पहले से चल रहे मामलों के संदर्भ में। यहाँ कुछ मुख्य अंतर दिए गए हैं:
1. नाम और संक्षिप्त नाम:
* भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code) : IPC
* भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita : BNS) – नाम में “भारतीय” और “न्याय” शब्दों को शामिल किया गया है, जो इसे अधिक स्वदेशी और न्याय-केंद्रित बनाने का प्रयास दर्शाता है।
2. अधिनियमन का वर्ष और लागू होने की तिथि:
* आईपीसी: 1860 में अधिनियमित और 1862 में लागू हुई थी। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान बनाया गया था।
* बीएनएस: 2023 में अधिनियमित हुई और 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई। यह स्वतंत्रता के बाद भारत द्वारा बनाया गया नया आपराधिक संहिता है।
3. संरचना और धाराओं की संख्या:
* आईपीसी: इसमें 23 अध्याय और 511 धाराएँ थीं।
* बीएनएस: इसमें 20 अध्याय और 358 धाराएँ हैं। बीएनएस में धाराओं की संख्या कम है, जिसका कारण कुछ धाराओं का विलय और अनावश्यक प्रावधानों को हटाना है।
4. भाषा और शब्दावली:
* आईपीसी: इसकी भाषा कुछ हद तक पुरानी और जटिल थी, जिसमें औपनिवेशिक काल की शब्दावली का प्रयोग होता था।
* बीएनएस: इसकी भाषा को अधिक सरल, स्पष्ट और आधुनिक बनाने का प्रयास किया गया है। कुछ पुरानी शब्दावली को बदला गया है और कानूनी भाषा को अधिक समावेशी बनाने का प्रयास किया गया है।
5. अपराधों का वर्गीकरण और पुनर्गठन:
* आईपीसी: अपराधों को उनके प्रकार के अनुसार विभिन्न अध्यायों में वर्गीकृत किया गया था।
* बीएनएस: अपराधों के वर्गीकरण को अधिक तार्किक और समकालीन आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्गठित किया गया है। कुछ अपराधों को नए शीर्षकों के तहत समूहित किया गया है, जिससे संहिता को समझना और लागू करना आसान हो सके। उदाहरण के लिए, महिलाओं और बच्चों से संबंधित अपराधों को एक अलग अध्याय में रखा गया है।
6. नए अपराधों का समावेश:
* बीएनएस: में कुछ नए अपराधों को शामिल किया गया है जो आईपीसी में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं थे, जैसे:
* आतंकवाद: आतंकवाद से संबंधित विशिष्ट प्रावधान जोड़े गए हैं।
* संगठित अपराध: संगठित अपराधों और छोटे संगठित अपराधों को अलग से परिभाषित और दंडित किया गया है।
* साइबर अपराध: डिजिटल धोखाधड़ी और साइबर अपराधों से संबंधित नए प्रावधान शामिल किए गए हैं।
* पहचान छुपाकर या गलत वादा करके यौन संबंध: विवाह, नौकरी या पदोन्नति का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाने को अपराध बनाया गया है।
* मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या): इसे एक विशिष्ट अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है।
7. मौजूदा अपराधों में परिवर्तन:
* राजद्रोह: आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) को बीएनएस में धारा 152 के तहत “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों” के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है। यह प्रावधान अधिक विशिष्ट है और इसका दुरुपयोग रोकने का प्रयास करता है।
* सजा के प्रावधान: कुछ अपराधों के लिए सजा के प्रावधानों में बदलाव किया गया है। कुछ अपराधों में सजा बढ़ाई गई है, जबकि कुछ में सामुदायिक सेवा को एक नए प्रकार के दंड के रूप में शामिल किया गया है।
8. प्रक्रियात्मक पहलू:
* बीएनएस: का उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक पीड़ित-केंद्रित बनाना, जांच और मुकदमे की प्रक्रिया को तेज करना और कानूनी प्रक्रियाओं को कम करना है।
9. ऐतिहासिक संदर्भ:
* आईपीसी: एक औपनिवेशिक विरासत थी, जिसे भारतीय समाज और आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार पूरी तरह से अनुकूलित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी।
* बीएनएस: स्वतंत्र भारत की अपनी आपराधिक संहिता है, जिसे समकालीन सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।
संक्षेप में, बीएनएस आईपीसी का एक आधुनिक और अद्यतन संस्करण है, जिसमें समकालीन चुनौतियों का समाधान करने के लिए नए प्रावधान जोड़े गए हैं, भाषा को सरल बनाया गया है, और संरचना को अधिक सुव्यवस्थित किया गया है। अब, भारत में आपराधिक मामलों में बीएनएस के प्रावधान ही लागू होंगे। भारतीय दंड संहिता और भारतीय न्याय संहिता में अंतर जानना आवश्यक है।